"द डायना आवर्ड" से सम्मानित अदिति जोशी के "स्पीकिंग ग्रे प्लेटफार्म" के जरिये मानसिक समस्याओं पर आज हजारों लोग खुलकर कर रहे है बात
विश्व स्वास्थ्य संगठन(WHO) की रिपोर्ट के अनुसार 10 से 20 प्रतिशत बच्चे मानसिक समस्याओं से जूझ रहे हैं।और कोरोना काल में तो यह समस्या औऱ भी ज्यादा बढ़ गई। उत्तराखंड के देहरादून की अदिति जोशी ने इस चुनौती को समझा और ‘स्पीकिंग ग्रे’ प्लेटफार्म के जरिये मानसिक समस्याओं पर लोगों से संवाद करना शुरू किया। अदिति जोशी बताती हैं कि ‘मैंने पाया कि लोग अवसाद, तनाव, बेचैनी जैसी समस्याओं से जीवन मे संघर्ष करते रहते हैं और इन समस्याओं को कभी किसी को बताते नहीं है जिस कारण इन समस्याओं से पीड़ित मन ही मन मे कुंठित होते है। और कई लोग तो इस गम्भीर समस्या के कारण आत्महत्या जैसा कदम भी उठाते है ।
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हाल ही में प्रतिष्ठित 'द डायना अवार्ड' से सम्मानित की गईं अदिति जोशी ने प्रारम्भिक शिक्षा देहरादून "एन मेरी" स्कूल से प्राप्त की और इंजीनियरिंग की पढ़ाई मुंबई से करने बाद अदिति जोशी ने डेढ़ साल तक नोकरी भी की लेकिन अदिति जोशी का इस क्षेत्र में मन नहीं लगा और अदिति ने सामाजिक क्षेत्र में कार्य करना शुरू किया।अदिति जोशी के पिता मुकेश जोशी इंजीनियर है और अधिशासी अभियंता के पद पर उत्तरकाशी में तैनात है माता लता जोशी गृहणी है।अदिति जोशी का छोटी उम्र से ही समाजसेवा के प्रति काफी रुझान रहा। अदिति जोशी ने कालेज में पढ़ते हुए उन्होंने मेंस्ट्रुअल अवेयरनेस से जुड़े प्रोजेक्ट पर कार्य किया । उन्होंने वर्कर्स के मुद्दे पर भी काम किया। अपने कुछ निजी एवं आसपास के लोगों के अनुभवों को देखते हुए उन्होंने मानसिक स्वास्थ्य एवं भावनात्मक विकास के क्षेत्र में काम करने का निर्णय लिया। इसके लिए अदिति जोशी ने पहले गहन अध्ययन किया। अदिति जोशी ने विशेषज्ञों से बात की और आखिरकार पिछले साल "स्पीकिंग ग्रे" नाम से एक प्लेटफार्म लांच किया। अदिति बताती हैं, ‘मैंने पाया कि लोग अवसाद, तनाव, बेचैनी जैसी समस्याओं से संघर्ष करते रहते हैं। लेकिन किसी से मदद नहीं मांगते। क्योंकि उन्हें खुद ही समस्या की गंभीरता का एहसास या उसके बारे में उचित जानकारी नहीं होती है। इसका कई बार बहुत खतरनाक परिणाम निकलता है। मैंने बहुत से लोगों को मानसिक अवसाद के कारण अपनी जिंदगी समाप्त करते देखा या उसके बारे में सुना है।‘ |
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मुंबई से इंजीनियरिंग करने वाली अदित ने पढ़ाई के बाद करीब डेढ़ साल नौकरी लेकिन अदिति का वहां मन नहीं लगा और उन्होंने समाजसेवा के क्षेत्र में आगे बढ़ने का निर्णय लिया। अदिति बताती हैं कि शुरुआत में उन्हें खुद ही नहीं पता था कि कैसे काम करना है? थेरेपिस्ट्स से कैसे संपर्क करते हैं? उन्होंने सोचा कि जब यह स्थिति उनकी है, तो दूसरे लोगों का क्या हाल होगा? कहती हैं, ‘मैंने पहले के छह महीने खुद से अध्ययन किया। वस्तुस्थिति को समझने की कोशिश की। फिर वालंटियर्स एवं इनटर्न्स की मदद से लोगों से संपर्क करना शुरू किया। कालेज स्टूडेंट्स ने काफी सपोर्ट किया। हमने सामुदायिक स्तर पर जनजागरूकता के कई कार्यक्रम किए। आज कई अंतरराष्ट्रीय पार्टनर्स भी हमसे जुड़े हैं।‘
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कोरोना महामारी ने निश्चित तौर पर अदिति के सामने कई चुनौतियां पेश कीं। वित्तीय मुश्किलें रहीं। लेकिन समुदाय के सहयोग ने अदिति को प्रेरित किया। डिजिटल माध्यम से लोगों से संपर्क करना, कार्यक्रम आयोजित करना आसान रहा। अदिति बताती हैं, ‘कोविड की वजह से पूरे विश्व के लोगों की सोच में बदलाव आया है। जिस तरह से देश-विदेश के लोगों ने हमारे अभियान का समर्थन किया, मुमकिन है कि उसका इतना सकारात्मक असर पहले देखने को नहीं मिलता। एक और उत्साहवर्धक बात यह रही कि जब लोगों ने खुद से स्वीकार किया कि वे किसी प्रकार की मानसिक समस्या से जूझ रहे हैं, तो दूसरों के प्रति उनके रवैये एवं सोच में बदलाव आया है। आज हजारों की संख्या में किशोर से लेकर युवा इनके प्लेटफार्म एवं इंस्टाग्राम पेज से अपनी समस्याओं का समाधान प्राप्त कर रहे हैं। स्पीकिंग ग्रे से जुड़े विशेषज्ञों की टीम उनकी मदद करती है। वेबसाइट पर विश्व भर के सुसाइड हेल्पलाइन नंबर्स हैं। कोई भी यहां से सहायता प्राप्त कर सकता है। अदिति मानती हैं कि अवसाद या अन्य मानसिक बीमारियों को लेकर समाज में अलग-अलग प्रकार की भ्रांतियां हैं, जिन्हें दूर करने की आवश्यकता है। जैसे अवसाद कई प्रकार के होते हैं। सभी को एक रूप में नहीं देखा जा सकता है। |
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रिपोर्ट-हेमकान्त नौटियाल
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