उत्तरकाशी-एक संगम से शुरू तो दूसरे संगम पर समाप्त होती है पंचकोषी वारुणी यात्रा,नगें पांव यात्रा करने पर समस्त पाप होते है नष्ट
उत्तरकाशी।।जम्पद में एकदिवसीय पंचकोषी वारुणी यात्रा प्रतिवर्ष चैत्र मास के त्रयोदशी को होती है।आज पंचकोषी वारूणी यात्रा पर आए श्रद्धालुओं में खासा उत्साह देखने को मिला पिछले 2020 और 21 में कोरोना महामारी के कारण पंचकोषी वारुणी यात्रा नहीं हो पाई थी। आज सुबह प्रातः से ही दूरदराज सहित उत्तराखंड के विभिन्न जनपदों से हजारों की संख्या में आये श्रद्धालुओं ने मन में मनोकामना लिए लगभग 15 किलोमीटर पैदल पंचकोषी वारूणी यात्रा की शुरुवात की वही वारूणी यात्रा के विभिन्न पड़ावों में स्थानीय ग्रामीणों के द्वारा वारुणी यात्रा पर आए श्रद्धालुओं को गढ़वाली जंगोरा की खीर और फलाहार परोसे गए और श्रद्धालुओं का बड़ा सत्कार किया गया।वहीं दूसरी तरफ बालखिला पर्वत नागणी ठांग में माँ नागणी देवी के दर्शनों के लिए भारी संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने आए धनारी पट्टी के बगसारी के शीर्ष पर माँ नागणी देवी के मंदिर में आज वारुणी पर्व के अवसर पर हज़ारो की संख्या में श्रद्धालुओं ने माता के दर्शन किए समुद्र तल से 8707 फ़ीट की ऊँचाई पर स्थित हिमालय के दर्शन के साथ साथ माँ नागणी देवी के दर्शन होते है। हर वर्ष वारुणी पर्व के समय यात्री यहां पहुचते है।। चिलमुड गांव, ढुंगाल गांव, बगसारी, फोल्ड, चकोंन की कुल देवी माँ नागणी देवी है। गांव के स्थानीय युवाओ के द्वारा सभी के लिये जलपान, फलाहार की व्यवस्था की जाती है। वरुणा घाटी क्षेत्र और धनारी क्षेत्र के लोगों का कहना है कि वरुणा यात्रा रुट और नागणी माता मन्दिर रुट को पर्यटन से जोड़ा जाए साथ ही लोगों ने शासन-प्रशासन से मांग की है दोनों ट्रेक मार्ग को व्यवस्थित, साफ सुथरा किया जाय और धार्मिक पर्यटन को बढ़ाने के लिये व्यवस्थाए दुरुस्त की जाए
आएं एक नजर वारुणी यात्रा पर डालते है-:श्रद्धालुओं के द्वारा लगभग 15 किलोमीटर कि इस पैदल यात्रा की शुरुवात बड़ेथी गंगा भगीरथी और वरुण नदी के संगम में स्नान करके प्रारंभ होती है और यह पैदल यात्रा वरुणावत पर्वत के ऊपरी क्षेत्र से होते हुए अस्सी गंगा और भागीरथी के संगम पर पूजा-अर्चना करके श्रद्धालु बाबा काशी विश्वनाथ मंदिर में जलाभिषेक करके सम्पन्न करते है। पंचकोषी वारुणी यात्रा का बड़ा धार्मिक महत्व माना जाता है। मान्यता है कि इस यात्रा को पूर्ण करने वाले व्यक्ति को 33 करोड़ देवी देवताओं की पूजा-अर्चना का पुण्य लाभ मिलता है। 15 किलोमीटर लंबी इस पदयात्रा के पड़ाव में बड़ेथी संगम स्थित वरुणेश्वर मन्दिर, बसूंगा में अखंडेश्वर मन्दिर, साल्ड में जगरनाथ मन्दिर और अष्टभुजा दुर्गा मन्दिर, ज्ञाणजा में ज्ञानेश्वर मन्दिर और व्यास कुंड, वरुणावत शीर्ष पर शिखरेश्वर मन्दिर तथा विमलेश्वर महादेव मन्दिर, संग्राली में कंडार देवता मन्दिर, पाटा में नर्वदेश्वर मंदिर है।
स्कंद पुराण के केदारखंड वर्णित के अनुसार वरुणावत पर्वत की पैदल परिक्रमा वारुणी यात्रा पर जो श्रद्धालु सच्चे मन से और नंगे पैर यात्रा करता है । उस ब्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं तथा हजारों तीर्थों की यात्रा का पुण्य लाभ उस श्रद्धालु को मिलता है।
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