उत्तरकाशी-कोठार(अन्न के भंडार) विलुप्ति की कगार पर,अब ग्रामीण क्षेत्रों में गिने चुने ही रहे गए,आवश्यकता है इस पौराणिक धरोहर के संवर्धन और संरक्षण की
उत्तरकाशी।।(ब्यूरो)कोठार यानि अन्न के भंडार पहाड़ी ग्रामीण अंचलों में अब विलुप्ति कगार पर है या विलुप्त हो चुके हैं। हमारी यह पौराणिक धरोहर जिसमें हमारे पूर्वज खेतों में जो अनाज उत्पन्न होता था उसको इन कोठारों में रखते थे। अब ग्रामीण क्षेत्रों में कोठार गिने-चुने ही दिखाई देते हैं और जो कोठार अब इक्का-दुक्का बचे है। उनका उपयोग अब नहीं होता है। आवश्यकता है इस पौराणिक धरोहर के संवर्धन और संरक्षण की
पहाड़ी क्षेत्रों में पहले अन्न को रखने के लिए एक निश्चित स्थान पूर्वजों द्वारा बनाया गया था। जिसको पूर्वजों ने कोठार नाम दिया था।और ग्रामीण क्षेत्रों के खेतों में जो भी अनाज उत्पन्न होता था उसको काश्तकार या पूर्वज सुरक्षा के लिए कोठार में रखते थे। कोठार में अनाज सुरक्षित रहता था क्योंकि यह बहुत मजबूत और टिकाऊ पौराणिक शैली से बने हुए थे। कोठारों की एक खूबी और भी थी इसमें एक चेननुमा संगल बंधी होती थी और उस पर घंटियां बंधी हुई रहती थी चेन का एक सिरा कोठार के मुख्य द्वार पर दूसरा सिरा घर के दरवाजे पर बंधा हुआ होता था यदि कोई चोर या कोई भी कोठार के मुख्य द्वार को खोलने की कोशिश करता तो घंटी बज जाती थी और घर वालों को पता चल जाता था कि कोई कोठार का द्वार खोल रहा है। लेकिन आज यह कोठार विलुप्त हो चुके हैं और अब जो ग्रामीण क्षेत्रों में गिने-चुने कोठार बचे हुए भी है।उनका उपयोग अनाज रखने में नहीं होता है इसलिए ग्राम पंचायतों को इनके संरक्षण और संवर्धन के लिए आगे आना चाहिए क्योंकि यह हमारी पौराणिक धरोहर है।
उत्तरकाशी जनपद पर्यटन की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है यहां पर काफी मात्रा में पर्यटक और चारधाम यात्री आते हैं और आज जिस प्रकार से सरकार भी होमस्टे के माध्यम से लोगों को स्वरोजगार से जोड़ रही है वहीं अगर यदि ग्रामीण क्षेत्रों में बचे हुए कोठारों का संवर्धन और संरक्षण होगा तो कहीं ना कहीं जो पर्यटक और चारधाम यात्री है। यहां पर आते हैं। इन कोठारों का दीदार कर सकेंगे और इनके बारे में जानने की कोशिश करेंगे कि इनका उपयोग किस रूप में होता था इसलिए ग्राम पंचायतों को इनके संरक्षण और संवर्धन के लिए आगे आना चाहिए।
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