देहरादून-समाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा दून विश्वविद्यालय का रंगमंच विभाग-प्रोफेसर सुरेखा डंगवाल
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देहरादून।। दून विश्वविद्यालय का रंग मंच विभाग द्वारा के० सी० पब्लिक स्कूल गोविंदगढ़ देहरादून में पन्द्रह दिवसीय रंगमंच कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसके समापन के अवसर पर स्कूल के छात्र-छात्राओं ने अंधेर नगरी चौपट राजा नाटक का सुदर मंचन किया के० सी० पब्लिक स्कूल के प्रधानाचार्य विशाल सिंह ने कहा कि हम दून विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो० सुरेखा डंगवाल का हृदय से धन्यवाद करते हैं जिन्होंने रंगमंच विभाग दून विश्वविद्यालय के माध्यम से हमारे स्कूल में रंगमंच कार्यशाला आयोजित की जिससे हमारे छात्र-छात्राओं का मनोबल बढ़ा है और उनके अंदर एक नवीन ऊर्जा का संचार हुआ है जो उन्हें भविष्य में मदद करेगा। नाटक को तैयार करने में रंगमंच विभाग के छात्रों में रजनी शर्मा, रीता विज, गणेश गौरव, सुमन काला ने सहयोग दिया है।
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कार्यशाला के बारे में दून विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर सुरेखा डंगवाल ने कहा कि छात्र-छात्राएं स्कूलों में बच्चों को रंगमंच का प्रशिक्षण देने के साथ-साथ नाट्यशास्त्र का भी ज्ञान दे रहे हैं जो कि हमारी भारतीय संस्कृति का एक परिचायक रही है।इस अवसर पर प्रो० एच० सी० पुरोहित ने कहा कि रंगमंच हमको जीवन को समझने का एक नया दृष्टिकोण देता है तथा समाज को और बेहतर ढंग से देखने का नजरिया प्रदान करता है
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कार्यशाला में भारतेंदु हरिश्चंद्र का एक प्रसिद्ध नाटक "अंधेर नगरी चौपट राजा" का प्रभावशाली मंचन किया गया है। नाटक की कहानी में दो साधु आते हैं, महंत और उनके दो शिष्य गोवर्धनदास और नारायणदास। गोवर्धनदास सस्ते भोजन के लालच में यहीं रुक जाता है, जबकि नारायणदास महंत के साथ चला जाता है। धीरे-धीरे, गोवर्धनदास मोटा होता जाता है और एक दिन एक बकरी के मरने के आरोप में उसे फांसी की सजा सुनाई जाती है, क्योंकि फांसी का माप उसके गले का माप समान है। अंत में, जब फांसी का फंदा बड़ा निकलता है, तो राजा खुद को बचाने के लिए फांसी पर चढ़ जाता है, क्योंकि महंत ने कहा कि इस शुभ मुहूर्त में मरने वाला सीधा स्वर्ग जाएगा। इस प्रकार, अंधेर नगरी के चौपट राजा का अंत होता है।यह नाटक तत्कालीन समाज और शासन व्यवस्था पर एक तीखा व्यंग्य है। भारतेंदु ने मूर्ख राजा और भ्रष्ट अधिकारियों के माध्यम से अन्याय, अव्यवस्था और विवेकहीनता पर करारा प्रहार किया है। नाटक की भाषा अत्यंत सरल और लोकभाषा के करीब है, जिससे यह आम जनता तक आसानी से पहुँचता है। इसमें मुहावरों और लोकोक्तियों का प्रभावी प्रयोग किया गया है। नाटक कई महत्वपूर्ण सामाजिक संदेश देता है। यह अन्याय और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाता है, विवेक और बुद्धि के महत्व को दर्शाता है, और अंधानुकरण के खतरों से आगाह करता है। 'टके सेर भाजी, टके सेर खाजा' की स्थिति अराजकता और मूल्यहीनता का प्रतीक है। गंभीर विषयों के बावजूद, नाटक में हास्य और मनोरंजन का भरपूर तत्व है। मूर्ख पात्रों की हरकतें और संवाद दर्शकों को हंसाते हैं, लेकिन साथ ही सोचने पर भी मजबूर करते हैं।
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इस कार्यशाला बच्चों ने चेहरे के भाव, शारीरिक भाषा, आवाज का उतार-चढ़ाव और चरित्र चित्रण के मूल तत्वों के परिचय को समझा। बच्चों को अपनी कहानियाँ बनाने और उन्हें नाटकीय रूप में प्रस्तुत करने के लिए प्रोत्साहित किया गया। संवाद लेखन और प्रभावी संवाद अदायगी पर ध्यान केंद्रित किया गया। शारीरिक गतिविधियाँ में शरीर को लचीला बनाने, मंच पर सहजता से घूमने और विभिन्न भावनाओं को शारीरिक रूप से व्यक्त करने के लिए व्यायाम और गतिविधियाँ का अभ्यास करवाया गया।नाटक में जिन बच्चों ने भूमिकायें निभाई उस में निखिल- गुरु, कृष्णा -शिष्य, यश-शिष्य, संजित-राजा, सेनापति-वैभव, दुकानदार एक-अनु, दुकानदार दो- वरदान, पानी वाला -सचिन पांडे, चूड़ी वाली -अन्यया, वरदान -ग्राहक, वैभव- सेनापति, कृतिका- मिठाई वाली, आकृति- मुरमुरे वाली, यश - शिष्य आदि विद्यार्थियों ने नाटक में प्रतिभाग किया। कार्यशाला को और अधिक सुंदर और बेहतर बनाने के लिए रंगमंच विभाग के शिक्षक डॉ अजीत पंवार और कैलाश कंडवाल ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । इस अवसर पर राजेश भारद्वाज, सरिता बहुगुणा, सरिता भट्ट, सोनिया वालिया, अंजेश कुमार, नितिन, रजत गोयल रजत गोयल आदि लोग उपस्थित थे।
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